Wednesday, March 10, 2010

यूं तो ये बात जगजाहिर है कि गुंण्डे-माफिया हाथी के महावत बन गए हैं। पर चुनावों में लाज-शरम ही सही उनको अपने दायरे में रहना पड़ता था। पर पिछले दिनों जिस तरह से इंडियन जस्टिस पार्टी के बहादुर लाल सोनकर की हत्या की गई और फिर सोनकर समाज के वोट को रोकने का जो सर्वसमाज अभियान चलाया जा रहा है वो बहन जी को मंहगा पड़ सकता है। सत्ता के मद में चूर जंगली हाथी के दिल्ली कूच के सर्वजन अभियान में बहुजन का उसके प्रति विक्षोभ बढ़ता ही जा रहा है जो दूसरे चरण के मतदान के दौरान इलाहाबाद, फूलपुर, कौशांबी और बांदा समेत आस-पास की सीटों पर साफ दिखा।

कभी
जवाहर लाल नेहरु की सीट रही फूलपुर के मैनापुर, मदारीपुर, जलालपुर,
तारापुरा समेत यमुना किनारे के बीसियों गांवों ने चुनाव बहिष्कार कर दिया।
जलालपुर में जहां 215 वोट पड़े वहीं लोकतंत्र की लाठी के बदौलत तारापुर
में 20 वोट पड़े। "साहब हमारा गांव अंबेडकर गांव है पर यहां न बिजली है न
पानी है ऊपर से है तो करवरिया, तो फिर हम क्यों वोट दें।" मैनापुर के
फूलचंद निषाद का यह संबोधन बसपा प्रत्याशी कपिल मुनि करवरिया के लिए था।
वे आगे कहते हैं कि करवरिया की ये जो चमचमाती हुई गाड़ियां देखते हैं वो
हम बालू मजदूरों के खून को चूस कर ली गई हैं। निषाद जो बसपा के पारंपरिक
वोटर है आज वो नदी से बालू निकालने के लिए हर खेप पर 200 रुपए बालू
माफियाओं को देने के लिए मजबूर हैं। यहां करवरिया की पूरी पहचान ही बालू
ठेकेदार की है। यहीं के रामचंद्र निषाद बताते हैं कि 200 वाला रेट नया है
इससे पहले 100 और 50 वाला था। पूछने पर कहते हैं कि साहब करवरिया को बहन
जी को पैसा देना होता है न।

यमुना
के इस पूरे क्षेत्र में बालू माफियाओं के खिलाफ चल रहे आंदोलन में सीपीआई
एमएल न्यू डेमोक्रेसी की अहम भूमिका है। न्यू डेमोक्रेसी के इस पूरे
आंदोलन को नक्सल गतिविधियों के रुप प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है।
जिसे करवरिया पोषित स्थानीय मीडिया जोर-शोर से कर रही है। जबकि न्यू
डेमोक्रेशी चुनावी लोकतंत्र में आस्था रखने वाली पार्टी है इसकी तस्दीक
इलाहाबाद से उनके प्रत्याशी हीरालाल का चुनाव लड़ना है। न्यू डेमोक्रेसी
के नेता सुरेश चंद्र कहते हैं कि लाल सलाम का हौव्वा खड़ा कर इस पूरे
क्षेत्र को नक्सल प्रभावित क्षेत्र की सूची में लाने साजिश चल रही है,
जिससे उसके नाम पर भारी पैमाने में यहां सरकारी पैकेज आए और शासन-प्रशासन
उसकी बंदरबाट कर सके।

`हां
हम लोगों ने ही मारा। मारा ही नहीं नंगा करके पीटते हुए घुमाया और सूअर
बाड़े में बंद कर दिया था। वो हमारे जाति-बिरादरी के लोगों को मारकर पेड़
पर टांग दे रहे हैं और हमसे कह रहे है, वोट हमें ही पड़ेगा नहीं तो कहीं
नहीं पड़ेगा।´ नाम पूछने पर उस पूरे समूह के माथे पर रोष की लकीरें साफ तन
जाती हैं, जो एक स्वर में गुस्से से कहते हैं कि पुलिस में रपट लिखाओगे न,
जाओ लिखा देना पूरे गांव ने उसे पीटा था। इलाहाबाद लोकसभा क्षेत्र के
भुंडा गांव में बसपा के `ब्राह्मण भाई चारा समीति´ के अध्यक्ष अक्षयवर नाथ
पाण्डेय ने सोनकर समाज के लोगों को अपने पक्ष में वोट डालने या कहीं नहीं
डालने के लिए दो तीन दिनों से लगातार धमका रहे थे। आखिरकार पारा तेइस
तारिख को मतदान बूथ पर गर्म हो गया और सोनकर समाज के लोगों ने उन्हें बुरी
तरह पीटा।

बालू
खनन के लिए बालू माफिया द्वारा मशीनें लगाना भी बालू मजदूरों को बेरोजगारी
और भुखमरी की ओर धकेल चुका है। जब कि सरकार और न्यायलयों ने अपने कई
महत्वपूर्ण निर्देशों में स्पष्ट कहा है कि बालू उत्खनन के लिए मशीनों का
उपयोग किसी भी सूरत में न हो। लेकिन भ्रष्ट प्रशासन और हाथी सवार माफिया
की मिली भगत से उच्चन्यायलय के निर्देशों की खुलेआम धज्जीयां उड़ाई जा
रहीं है। चायल के एस.डी.एम. अनिल कुमार उपाध्याय तो पूरी बेशर्मी से झूठ
बोलते हुए बालू उत्खनन माफिया द्वारा मशीनों के इस्तेमाल को वैध बताते हुए
दावा करते हैं कि हाईकोर्ट ने ही मशीनें लगाने का निर्देश दिया है। लेकिन
वे न तो फैसले की तिथि बताने को तैयार है और न ही उसकी प्रतिलिपी ही
दिखाने को।

जबकि
सच्चाई तो यह है कि जब बालू मजदूरों ने अपना रोजगार छिनते देख मशीनों को
बंद करने के लिए दसियों हजार की संख्या में जिला मुख्यालय पर धरना दिया तब
उच्च न्यायलय ने मामले को स्वत: ध्यान में लेते हुए इसमें हस्तक्षेप किया।
मई 2008 में इलाहाबाद उच्च न्यायलय के न्यायमूर्ति जनार्दन सहाय और
न्यायमूर्ति एस.पी मेहरोत्रा की एक खंडपीठ ने बालू खनन कार्य में मशीनों
के चलाये जाने के अधिकार पर एक सुनवाई की जिसमें उसने स्पष्ट निर्देश दिया
कि पर्यावरण की सुरक्षा और रोजगार के लिए मशीनों का इस्तेमाल न किया जाय।
आदेश में आगे सरकार सेे इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए बालू माफिया के
खिलाफ कठोर कार्यवाही करने का आदेश भी दिया गया। लेकिन जब विधानसभा में
पूर्ण बहुमत हो, विपक्ष भ्रष्ट और अलोकप्रिय हो, और सपना प्रधानमंत्री
बनने का हो तब न्यायलयों की फैसलों की क्या औकात। हाथी के गणेश बनने के
बाद उस पर सवार हुए कपिल मुनी करवरिया हों या कबीना मंत्री और `इनको मारो
जूते चार´ के जमाने वाले ख़ाटी महावत इंद्रजीत सरोज सभी की मशाीनें अपने
ही पारंपरिक मल्लाह वोटरों को मुंह चिढ़ा रही हैं। दरअसल इस पूरे क्षेत्र
में दबंगई, वो चाहे राजनीतिक हो या सामाजिक, का अखाड़ा नदी और रेत ही रहा
है। जिस पर करवरिया कुनबा शुरु से ही एक मजबूत पाला है। जिसके आतंक का
अंदाजा इसी से लग जाता है कि कपिल मुनि करवरिया के पिता वशिष्ठ मुनि
करवरिया ऊर्फ भुक्कल महराज जिन पर आधा दर्जन हत्या और डकैती के आरोप थे
अपने विरोधियों को पालतू मगरमच्छों के आगे जिन्दा डाल देने के लिए कुख्यात
थे। भुक्कल महराज पर ये भी आरोप है कि उन्होंने पुलिस की राइफल से 17 पासी
समाज के लोगों की हत्या कर यमुना में फेंक दिया था।

इस
पूरे इलाके में पासी मत निर्णायक है। इसी के चलते कौसांबी सुरक्षित सीट से
गिरीश पासी पर बसपा ने अपना दांव चला। बालू माफिया की पहचान वाले गिरीश ने
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के राजनैतिक खासमखास सीपी सिंह की हत्या से
अपने `राजनैतिक करियर´ की शुरुआत की थी। कपिल मुनि करवरिया को टिकट मिलने
के चलते पासियों का एक बड़ा खेमा गिरीश के साथ नहीं है। जिसका असर ये रहा
कि मल्हीपुर से जहां ईवीएम को बैरंग लौटना पड़ा तो वहीं नंदापुर में एक
सैकड़ा भी मत नहीं पड़ा। यहां भी यमुना किनारे के दर्जनों गांवों के बालू
मजदूरों ने लोकतंत्र के इस महोत्सव का बहिष्कार कर अपनी मांगों को केंद्र
में ला दिया। इस राजनीति को गौर से देखने वाले मानवाधिकार संगठन पीयूएचआर के नेता राजकुमार पासवान कहते हैं `बसपा से दलितों की दूरी बढ़ रही है,
जिसे दलितों के नाम पर बनी अन्य पार्टियां एक हद तक आकर्षित करने में सफल
भी रही हैं।´ पर वे इस नए दलित उभार पर अविश्वास की मुहर लगाते हुए कहते
हैं कि चाहे बसपा हो या इंडियन जस्टिस पार्टी ये सभी ब्यूरोक्रेटों द्वारा
खड़ी की गई पार्टियां हैं। जो उदित राज बसपा पर दलित आंदोलन को कुंद करने
का आरोप लगाते हैं उन्होंने क्यों नहीं बहादुर लाल सोनकर की हत्या को
राजनैतिक मुद्दा बनाया। वे मायावती की कार्यनीति पर सूक्ष्मता से निगाह
डालते हुए कहते हैं कि बहन जी कानून व्यवस्था की बात करती हैं पर क्या
उन्होंने कभी मजबूत विपक्ष की भूमिका अदा की या फिर किसी दलित उत्पीड़न की
घटना पर कोई आंदोलन खड़ा होने दिया। ऐसा उन्होंने नहीं किया क्योंकि वे
जानती हैं कि प्रतिरोध की चेतना से लैस दलित उनकी भी खिलाफत कर सकता है।
बहरहाल सर्वसमाज के इस बिगड़ते समीकरण का खामियाजा कांग्रेस से बसपा में
आए राजनैतिक गणितबाज अशोक बाजपेयी को इलाहाबाद में भुगतना पड़ सकता है।

Sunday, March 7, 2010

बदहाल विधर्व

आने वाले गर्मी के मौसम में भीषण जल संकट पैदा होने के आसार अभी से दिखाई दे रहे हैं। चारे के अभाव में पशुओं पर गंभीर संकट पैदा होगया है। किसान पशुओं को खूंटे से बांधकर मारने की बजाय उसे कसाईयों हवाल कर कुछ पैसे पाना उचित समझ रहे हैं। क्यों की किसानो के पास उन्हें खिलने न पर्याप्त चारा है और न ही पर्याप्त धन जिससे वो चारा खरीद सके। इन दिनों विदर्भ के अकोला, यवतमाल, नागपुर, वर्धा, वाशिम जिलों में जलसंकट की स्थिति गंभीर होती जा रही है। अतरेदिन पता चलता है कि लोग पानी के लिए मारपीट पर उतारू हो रहे हैं। तो आने वाले अप्रैल-मई-जून में स्थिति कितनी भयानक होगी, जिसके बारेमे सोचने से ही सिहरन होने लगी है। पिछले साल बारिश के दिनों में बेहद कम बारिश का झटका किसानों को लगा है। सफेद सोना कहे जाने वाले कपास की फसल ने इस बार भी धोखा दिया। व्यापारियों द्वारा की जा रही लूटपाट के कारण किसानों ने कपास से मुंह मोड़कर सोयाबीन को अपनाया। विदर्भ में सोयाबीन की बुआई में इजाफा हो गया लेकिन सोयाबीन को बारिश ने धोखा दे दिया। बारिश के अभाव में सोयाबीन पर लष्करी इल्लियों का प्रकोप हो गया। चंद्रपुर-वर्धा जिलों में इन इल्लियों के कारण हाहाकार मच गया। जिस क्षेत्र में लष्करी इल्लियों का प्रकोप नहीं था, वहां अज्ञात बीमारियों ने सोयाबीन को झटका दे दिया। सोयाबीन का उत्पादन घटकर प्रति एकड़ 2 क्विंटल पर आ गया। इससे पूर्व यही उत्पादन प्रति एकड़ 5 क्विंटल से ज्यादा था। बाजार में भी सोयाबीन के भाव कम हो गए। धान का कटोरा कहे जाने वाले गड़चिरौली, चंद्रपुर, भंडारा, गोंदिया जिले के किसान भी परेशानी में फंस गए। भारी मेहनत के बाद उनके हाथ में आया अनाज किसानों की आंखों में आंसू लाने वाला रहा। पशुओं के लिए तो महज तनस ही हाथ लग पाया। कमजोर बारिश के कारण विदर्भ में जलस्तर भी घट गया है। रबी का फसल के लिए पानी मिलना मुश्किल हो गया है। तालाब से फसल के लिए दिया जाने वाला पानी पीने के लिए सुरक्षित रखा जा रहा है। फसल को 4-5 पानी की जरूरत वाले किसान चिंतित नजर आ रहे हैं। सरकार जब अभी से जलसंग्रह को नियंत्रित करने में लगी है, तो गर्मी के दिनों में जलसमस्या कितनी भीषण होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस वर्ष विदर्भ का कोई भी जलाशय पूरी तरह नहीं भरा। अधिकतर जलाशय तो 40 प्रतिशत भी नहीं भर पाए।
कमजोर बारिश के कारण जलसमस्या के साथ-साथ पशुओं के लिए चारे का संकट किसानों के सामने है। जानकार कहते हैं कि इसी संकट के कारण सैकड़ों गायों को कसाइयों के हवाले किया जा चुका है। खेती के लिए किसानों को अच्छे बैलों की जोड़ी मिलना मुश्किल हो गया है। 5 वर्ष पूर्व 10 से 12,000 रूपये मे मिलने वाली बैलजोड़ी की कीमत आज 30 हजार रूपये से ऊपर पहुंच गई है। खेती के लिए निरूपयोगी, कमजोर पशु ही पहले कसाइयों को बेचे जाते थे, लेकिन इन दिनों चारे के अभाव के कारण मजबूत व उपयोगी पशु भी कसाइयों के हाथों बेचे जा रहे हैं। 30 हजार वाले पशु महज 5 से 7 हजार रु. में भी बेचकर किसान अपना घर चलाने का मजबूर हो रहे हैं।

Tuesday, March 2, 2010

महगाई पर मच मच

आज पूरा देश महगाई हा हा कार कर रहा है। देश के नेता अपनी सियासत की रोटी सेक रहे है। खुद तो भर पेट खाना खा रहे है॥ और देश की आवाम को पेट पर गीला कपडा बाधकर सोने को मजबूर कर रहे है। देश भर में आये दिन कही न कही नेता सरकारके खिलाफ मोर्चा बंदी करते दिख जाते है। इस मोर्चे बंदी में नेता तो अपना हित सोच लेते है। लेकिन उस आम आदमी के बारे में जरा भी नहीं सोच ते। जिसके वोट से वो जीत कर सडक से संसद तक का सफर तयकरते है। देश में इस समय बजट सत्र चल रहा है। सरकार के पास कई विधेह्क है जिन्हें वो इस सत्र में लाना चाहती है। लेकिन महगाई के लिए सरकार केवल आश्वासन दे रही है। कर कुछ नहीं रही प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह कहते है की जल्द महगाई पे काबू पा लिया जाइये गा। लेकिन कब ये सायद प्रधान मंत्री को भी नहीं मालूम। संसद में विपक्च भी हंगामा से जयादा कुछ नहीं कर रहा है। कभी स्पीकर के आसन तक आ जाना तो कभी सदन से वक् आउट कर जाना। क्या महगाई के लिए सरकार ही जिमेदार है। मेरा मानना है। की महगाई के लिए एक सरकार नहीं बल्कि पूरा देश और उसके नेता और उनकी नीतिया जिम्मे दार है।अगर देश और आम आदमी का सही मायने विकास करना है । तो हमें खुद से पहले देश के बारे में सोचना होगा.