मोदी ने देश की जनता को पहली बड़ी सौगात दी है.... पीएम ने दिल्ली के
विज्ञान भवन से पूरे देश की जनता को बैंक खाते खुलवाने के लिए एक ऐसा तौहफा दिया
है..जिससे देश के आम आदमी के पास एक ऐसी ताकत होगी जिससे वो अपनी मेहनत की कमाई को
बैंकों में जमा कर सकेंगे... अब देश के गांवों में रहने वाली 42 फीसदी आबादी जिनके
पास बैंकों में खाता नही था वो लोग भी आसानी से खाता खुलवा सकते हैं....लेकिन मोदी
की इस योजना के अंदर कई मायने निकल रहे हैं.... एक तो मोदी देश की आवाम को सही
मायने में 21वीं सदी में लाना चाहते हैं... दूसरी ओर देश के पैसे को देश के विकास
में लगाने की योजना मोदी ने तैयार कर ली है.... मोदी देश के विकास में हर भारतीय
को शामिल करना चाहते हैं....प्रधानमंत्री अपने इस विजन को कई बार सार्वजनिक मंचों
से ज़ाहिर भी कर चुके हैं...वो आम आदमी को यह एहसास दिलाना चाहते है कि उनका भी
पैसा देश के विकास में लगा है...मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से जन धन
योजना की घोषणा की थी औऱ 13 दिनों में ही इस योजना को अमली जामा पहना दिया... ऐसा
शायद देश के इतिहास में पहली बार हुआ कि कोई योजना घोषणा को इतने कम समय में मूर्त
रूप में आ गई हो... मोदी की इस योजना के लागू होते ही एक नया इतिहास और रचा गया...
देशभर में एक दिन में 1.5 करोड़ लोगों ने खाता खुलवाएं....साथ ही इतने लोगों का एक
साथ बीमा भी हो गया हो...प्रधानमंत्री मोदी ने 6 महीने में 7.5 करोड़ घरों में 15
करोड़ लोगों के खाते खुलवाने का लक्ष्य तय किया है....इसके साथ ही 26 जनवरी 2015
तक खाता खुलवाने वालो को एक लाख तीस हजार रूपये के बीमा का भी तौहफा दे दिया...
जिसमें एक लाख का दुर्घटना बीमा और तीस हजार का जीवन बीमा होगा...लेकिन मोदी की इस
योजना के अन्दर झांक के देखें तो तस्वीर कुछ और ही दिखती है.... एक ऐसी तस्वीर
जिसमें सबकी तरक्की होगी... अगर मान ले कि 15 करोड़ लोग 26 जनवरी तक खाता खुलवा
लेते हैं और उनमें से 15 करोड़ लोग अपने खाते में 1000 रूपये जमा करते है तो सरकार
को 150 अरब रूपये मिल जाएगें जो देश का पैसा होगा....मेरा अनुमान है कि यह रकम
इससे कहीं ज्यादा होगी.... जिसके लिए सरकार के विश्व बैंक को ब्याज भी नही देना होगा....यानी
मोदी सरकार को देश में कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए विश्व बैंक की ओर
हाथ नहीं फैलाने पड़ेगें... देश के अंदर का पैसा जितना बाजार में आएगा उतना ही
रूपया मजबूत होगा जिसका नतीजा ये होगा भारत विश्व पटल पर वैश्विक स्तर पर मजबूत
बनेगा... इस योजना का दूसरा पहलू यह भी है कि मोदी देश से भ्रष्टाचार को खत्म करना
चाहते हैं.... अब सरकार लोगों के दी जाने वाली सब्सिडी को सीधे उनके खाते में पहुंचा
देगी.... इसके साथ ही मनरेगा में हो रहे घोटालों पर भी सरकार लगाम लगा सकेगी....
सरकार लोगों को उनकी मेहनत का मेहनताना सीधे उनके खाते में भेजा करेगी.... जिससे
दलालों, अधिकारियो और ग्राम प्रधानों पर लगाम लगेगी जो गांव के मासूम लोगों का छल
से पैसा निकाल लेते थे... प्रधानमंत्री मोदी की इस योजना से बैंक उत्साही तो जरूर
हैं लेकिन उनके मन में एक शंका भी है... बैंक खाता खुलवाने 6 महीने बाद 5000 रूपये
के ओवरड्राफ्ट को लेकर परेशान हैं... देशभर में ऐसे लाखों खाते हैं जिनमें सालों
के कोई लेन-देन नही हुआ है... और अगर लोगों ने ओवर ड्राफ्ट का गलत फायदा उठाया तो
बैंकों को करोड़ों रूपये का नुकसान होगा...प्रधानमंत्री मोदी शुरु से ही महिलाओं
को सशक्त बनाने में लगे हुए हैं... इस योजना को भी मोदी ने देश की महिलाओं के लिए
एक बड़ी कामयाबी बताया है....
स्वदेश
आप की आवाज
Friday, August 29, 2014
Tuesday, August 26, 2014
अब बदलेंगे दिन हम इंतजार में हैं.............
आजादी के 67
साल बीत गये... फिर भी देश की एक बड़ी आबादी आज भी दो जून की रोटी के लिए दिन रात
जद्दोजहत कर रही है.. ये आबादी आज भी खुद को साबित करने के लिए संघर्ष कर रही
है... कोई खुद का राशन कार्ड बनवाना चाहता है तो कोई सरकार से योजना के नाम पर
मिलने वाली रकम के इंतजार में है....लेकिन ये इंतजार है कि खत्म ही नही होता...
नेता है कि लोगों को आश्वासन देते हैं....अधिकारी लोगों के टरकाते रहते हैं... ये
हाल है आज के आम आदमी का.... जो सरकार, नेता और अधिकारियों के बीच में पेंढ़ुलम
बना हुआ है.... देश में जो हालात नेहरू के दौर में सन् 47 में थे वो आज मोदी राज
में भी है... नेहरू से लेकर मनमोहन तक और अब मोदी के दौर में योजनाएं बहुत तैयार
की गई... लोगों को लगा कि अब कुछ सालों में देश की गरीबी दूर हो जाएगी...लेकिन लाखों
योजनाओं के बाद भी कोई सरकार और नेता देश के हालात नहीं बदल पाया... आखिर ये कैसी
गरीबी है जो अरबों रूपये खर्च होने के बाद भी जाने का नाम नही ले रही है... आज भी
देश में पानी, सड़क, बिजली जैसी समस्याओं को लेकर लोग एक दूसरे को मरने मारने पर
उतारू हो जाते है.... यानी आजादी के वक्त देश में पानी, सड़क, बिजली ही बड़े
मुद्दे थे... यही मुद्दे आज भी कायम हैं... ऐसा नही है कि सरकारों ने इन समस्याओं
को हल करने के प्रयास नही किए.. नेहरू के दौर में योजना आयोग बना वो मनमोहन के दौर
तक में काम करता रहा.... तब से अब तक योजना आयोग ने कई योजनाएं गरीबों के लिए
तैयार की लेकिन वो सिर्फ फाइलों में रही या फिर कुछ ही लोगों तक पहुंच पाई....
जिनको जरूर थी उनको कभी योजना का लाभ मिला ही नहीं... इन योजनाओं का सबसे ज्यादा
फायदा बिचौलियों और उन लोगों को मिला जो इसके पात्र नही थे.... सही मायने में
योजना आयोग की योजना का लाभ देश के महज़ 30 फीसदी लोगों को ही मिला है... जब कि आज
भी 70 फीसदी आबादी इसके इंतजार में है.... अब मोदी सरकार से देश की आवाम को बहुत
उम्मीदें है... कि मोदी अब उनके हालातों में बदलाव लाएंगे.... ऐसा लगता भी है
क्योकि देश में मोदी जहां भी जाते है वहां के किसानों और स्थानी कारोबार पर ही बात
करते हैं....चाहे वो वाराणसी का हथकरगा हो या जम्मू- कश्मीर का केसर ... मोदी देश
की इन पहचानों को और आगे ले जाने की कोशिश में लगे हैं... इसी के चलते मोदी ने लाल
किले के प्राचीर से ‘ मेक इन इंडिया’ का संदेश दिया है.... मोदी देश के स्थानीय कारोबार को विश्व के
पटल पर लाना चाहते हैं.... ऐसा पहली बार हो रहा
है कि कोई प्रधानमंत्री इनके बारे में सोच रहा है.. नही तो 67 सालों में जब भी आम
आदमी की समस्याओं के बारे में आवाज उठी... तो सरकार इनके लिए एक पैकेज निकाल पर
खुश कर देती थी... जबकि हकीकत में वो पैकेज इस जरूरतमंद लोगों तक ना पहुंच कर
सरकारी फाइलों और बिचौलियों के बीच में बट जाता था.... लेकिन मोदी जिस रंग में दिख
रहे है उससे ऐसा लगता है कि अब ऐसा नही होगा जैसा अभी तक होता आया है... इसके लिए
मोदी ने सबकी जवाबदेही तय कर दी है...मोदी अपने मंत्रियों की क्लास कुछ इस तरह
लेते हैं जैसे जिले का कोई कप्तान दरोगाओं की लेता हो... मोदी ने मंत्रालयों में
होने वाले टकराव को खत्म करने की कोशिश की है... क्योकि पिछली यूपीए सरकार में कुछ
मंत्रालय ऐसे थे जो आपस में ही लड़ते रहते थे.... जिससे कई योजनाएं पूरी नही हो
सकी... मोदी ने अपने 3 महीने में जितना काम किया है उतना शायद मनमोहन सिंह ने 10
सालों में नहीं किया... इतना ही नही मोदी सरकार का पहले सत्र में सबसे ज्यादा काम
हुआ.....यानी साफ है कि मोदी अभी काम करने के मूड में है... इसलिए मोदी के मंत्री
हमेशा सतर्क रहते हैं.... पता नही कब मास्टर जी हिसाब मांग ले.... और मोदी का कोई
भी मंत्री मोदी की क्लास में खुद की फजीहत नहीं कराना चाहता है... जाहिर है मोदी
को काम करने वाले पसंद हैं.. काम चोर नहीं... मोदी खुद भी 20 घंटे काम करते है...
मोदी ने जब से प्रधानमंत्री का पद संभाला है तब से अब तक एक दिन की भी छुट्टी नही
ली है.... मोदी देश को डिजिटल इंडिया का ख्वाब दिखा रहे है.. मोदी सरकार को देश की
आवाम के हाथों में देना चाहते हैं... मोदी ने हर आदमी का बैंक में खाता है इसके
लिए जन-धन योजना की शुरूआत भी कर दी है....जिसमें हर नागरिक का बैंक में खाता
होगा.... इसका सबसे ज्यादा फायदा उन लोगों को होगा जो लोग बैंक में खाता ना होने
या बैंक दूर होने का कारण जालसाजों के चक्कर में फंस जाते हैं... अब लोगों के
चिटफंड के जालसाजी के कारोबार में पैसा लगाने की जरूरत नही होगी... आप देश के दूर
दराज इलाकों में चले जाइये जहां बैंक ना हो लेकिन वहां चिटफंड का आफिस जरूर आपको
मिल जाएगा.. जो हर महीने गरीबों की मेहनत की कमाई को डकार रहे हैं... यानी की मोदी
की इस योजना से सबसे ज्यादा देश के गरीबों को ही लाभ होगा बशर्तें योजना सही रूप
से लागू हो सके.... इसके साथ ही मोदी देश में 100 स्मार्ट सिटी बनाने की बात कर
रहे है.. इस पर गुजरात में काम भी चल रहा है.. वही मोदी ने हर गांव में बुनियादी
सुविधायें पहुंचाने के प्रयास भी शुरू कर दिए हैं.... मोदी ने सांसदों से कहा है
कि वो अपने क्षेत्रों के हर गाव में घर-घर शौचालय हो ये सुनिश्चित करें....मोदी की
इस योजनाओं के देश औऱ सुन कर तो ऐसा लगता है कि अब देश में कुछ होगा.... लेकिन एक
बड़ा सवाल ये है कि मोदी साहब को उन अधिकारियों और बाबुओं से काम कराना है जिन्हें
काम ठीक से ना करने की आदत है....ये चुनौती नेहरू के दौर में भी थी और आज भी
है....
Friday, January 10, 2014
देश की सोच बदल रही है.............
देश के समूचा उत्तर भारत इस वक्त कड़ाके की ठंड़
से ठिठुर रहा है। हर कोई बस खुद को ढ़कना चाहता है। लेकिन देश में कड़ाके की सर्दी
के इस मौसम में भी राजनीतिक गलियारों में बहुत गर्मी है। गर्मी ऐसी की हर कोई
बेचैन है चाहे वो खास हो या आम। कोई चौराहें की चाय की दुकान पर होने वाली
अड़ेबाजी में नई सोच की बात करता है और कोई देश के सबसे वीवीआईपी इलाके लुटियन जोन
में सुबह की चाय की चुसकियों के साथ नई राजनीतिक सोच पर सोचता है। हालात ये है कि
सभी अपनी विरासत को बचाने में लगे हैं। दोनों को तो बस चिंता है अपने भविष्य की।
क्योकि देश में एक बार फिर से आम आदमी ने सत्ता को चुनौती दी है। भारत या कहें
दुनिया का इतिहास गवाह है कि जब-जब आम आदमी ने सत्ता को चुनौती दी है तो कुछ नया
हुआ है। इस समय देश में आलम ये है कि कोई इमेज डेवलप करने के लिए 500 करोड़ खर्च
कर रहा है तो कोई पीएम इन वेटिंग है जो इतिहास पर अफसोस जता रहा है। वही एक आम
आदमी पार्टी के नेता अरिवंद केजरीवाल देश में हैं जो एक नई लकीर खींचने का प्रयास
कर रहे हैं। प्रयास ये नही कि किसी नेता या पार्टी की लकीर मिटा के अपनी लकीर खींच
रहे है। केजरीवाल एक ऐसी लकीर खींच रहे है जिसे इस देश के नेताओं ने खींचने की
कोशिश कभी नही की। आज हर कोई केजरीवाल के साथ जुड़ना चाहता है। ये वही केजरीवाल
हैं जिन्हें दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान उम्मीदवार नही मिल रहे थे। लेकिन आज
तस्वीर बदल गई है आज देश के पास एक नेता नही एक सोच है। जिसका एक मात्र उद्देश्य
है आम आदमी को वो सुविधाएं मिले जिसके वो हकदार हैं। आखिर केजरीवाल ने ऐसा क्या
नया कह दिया कि आज आम आदमी केजरीवाल के साथ खड़ा है। चुनावों में हर पार्टी के
मेनिफेस्टों में बिजली,पानी,सड़क मुख्य मुद्दे होते है लेकिन वो सिर्फ मुद्दे भर
ही बन कर रह जाते हैं। ऐसा क्या है कि आजादी के 66 बरस बीत जाने के बाद भी देश आज
वही खड़ा है जहां 15 अगस्त 1947 को खड़ा था। देश में तब भी बिजली,पानी, सड़क और
गरीबीं मुद्दे थे आज भी है। आजादी के इतनें सालों बाद भी कुछ नही बदला। हर साल
सरकारें गरीबों के पुर्नवास के लिए सैकड़ों योजनाय़ें बनाती है लेकिन तस्वीर है कि
बदलती नहीं। देश में गरीब आज भी सड़कों के किनारे सोने को मजबूर है। आज भी देश में
हर शहर में सैंकड़ों झुग्गी बस्तियां बसी हुई है। जहां इंसान नरक से भी बदत्तर
जिंदगी जीने को मजबूर है। आज भी हर साल पानी को लेकर शहरों,गांवों कई हत्यायें हो
जाती है। खुद की प्यास बुझाने के लिए लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। वज़ह
साफ है कि इनकी दशा में सुधार करने के लिए कभी कोई ईमानदार प्यास ही नही किया गया।
वरना ऐसी कौन सी गरीबी है जो सरकार की अरबों खरबों रुपये की योजनाओं के बाद भी
जाने का नाम नही ले रही है। देश से गोरे गये और अपनों ने अपनों का शोषण करना शुरू
कर दिया। लोगों के आज सबसे ज्यादा परेशानी देश की बाबूशाही से है जो ना तो खुद काम
करती है और ना ही किसी को काम करने देती है। यहीं पर केजरीवाल की सोच आम आदमी के
जेहन में फिट बैठती है। केजरीवाल देश में काम के बदले गांधी के चल को खत्म करने की
कोशिश में लगे हैं। केजरीवाल अफसरों को ईमानदारी से काम करने की सलाह देते है। और लोगों
को उन पर नज़र रखने के गुर सिखा रहे हैं। लेकिन लोगों की सोच में कितना बदलाव आएगा
ये एक बड़ा सवाल है क्योकि रिश्वत मांगना और देना दोनों गुनाह हैं। अब एक बात और
समझने वाली है कि जिस तरह आज केजरीवाल के साथ लोग जुड़ रहे है ऐसे में केजरीवाल के
सामने खुद की सोच को बनाये रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी। नहीं तो कहीं केजरीवाल का
भी हाल इतिहास के आंदोलनों जैसा ना हो जाएं।
Sunday, July 3, 2011
आज मेरी विदाई है ...........................
30 जून 2011 ये मेरी विदाई की तारीख है। आज के बाद लोग मुझे बीता हुआ कल कहेंगें। मैं कभी देष की अर्थव्यवस्था हुआ करती थी आज बीता हुआ कल हूं। अब लोग मुझे अपनी जेब में भी रखना पसंद नहीं करते। कभी मैं देष के नन्हे मुन्नों की षान थी। मैं बच्चों की सबसे प्यारी दोस्त थी। वो जो कुछ भी पाना चाहते थे मेरे बदले में पा लिया करते थे। मैं चवन्नी हूं। बात बहुत पहले की है जब मैं और लेखक गहरे दोस्त हुआ करते थे। वो हमेषा मुझे अपनी जेब में रखता था। लेकिन पिछले कुछ सालों से हम दोनों साथ नहीं वज़ह है अब उसके नये दोस्त बन गए हैं। अब वो बड़े सिक्कों और रूपयों के साथ दोस्ती करता है। मेरे दोस्त की बड़े सिक्कों और रूपयों की चाहत में मैं बहुत पीछे छूट गयी। मुझे इस बात का जरा सा भी गम नहीं कि आज मैं और मेरा दोस्त साथ नहीं है। बस गम इस बात का है कि वो आज मेरी आखिरी विदाई पर दो आंसू तो दूर मेरे और उसके साथ बीते अतीत के पलों को भी याद नहीं कर रहा है। मुझे इस बात का गम नहीं कि आज मेरी आखिरी विदाई है। मुझे तो लोगों ने बहुत पहले ही अपनी जेबों से विदा कर दिया था। कभी मैं भगवान के दर की षोभा थी भगवान के भक्त मेरे साथ एक रूपये को मिला कर चढ़ावा चढ़ाते थे बीसआना। अब मेरी भी वहां जगह नहीं है। कभी मुझे लेकर इस देष के लोग अपनी छोटी-छोटी जरूरतें पूरी किया करते थे। मैं देष की बड़े से बड़े कारोबारी की अहम जरूरत थी। कभी-कभी तो मुझ को ही लेकर बड़े-बड़े विवाद हो जाया करते थे। लेकिन वो सारी बातें मेरे लिए बेमानी हैं। जब मेरा दोस्त छोटा था तो स्कूल जाते समय अपनी मम्मी से मुझे मांगना नहीं भूलता था। वो स्कूल ले जाकर इंटरवल में मुझ से कभी टॉफी तो कभी लॉलीपॉप के मजे लिया करता था। षाम को क्रिकेट खेलने जाता और जब कभी गेंद खो जाती तो बच्चे मुझे मिलाकर नई गेंद ले आया करते थे। इस तरह हम दोनों एक दूसरे की बहुत बड़ी जरूरत थे। लेकिन जब वो थोड़ा बड़ा हुआ तो उसका एक और नया दोस्त बन गया मुझसे बड़ी अठन्नी। मेरा और मेरे दोस्त का साथ स्कूल तक ही रहा जब वह कालेज पढ़ने गया तब हम कभी कभार ही साथ हुआ करते थे। आज वो मुझे चाह कर भी नहीं पा सकता। कुछ सालों पहले वो एक प्राचीन मंदिर में देवी के दर्षन करने गया था। जहां पर केवल बीसआना ही चढ़ावे में चढ़ते है। तब मेरे दोस्त को मेरी कुछ पल के लिए याद आई। बड़ी मुष्किल से एक माली से उसने बड़े सिक्कों के बदले मुझे लिया था। ये हमारी आखिरी मुलाकात थी। इसके बाद हम कभी नहीं मिले। अब तो वो लोग भी मुझे अपने पास नहीं रखते जिन्हें समाज के लोग मुझे दान में दे दिया करते थे। वज़ह है आज मैं चलन में नहीं हूं। कोई दुकानदार, रिक्षेवाला, ऑटोवाला, नहीं लेता। बात बहुत लम्बी है सुनाऊंगा तो किताब भी कम पड़ जाएंगी। क्योकि कहीं ना कही मैं देष के हर आमो-खास के साथ जुड़ी रही हूं। मैं बेवज़ह विदा नहीं हो रही हूं। सरकार ने मुझे विदा करने की वज़ह बताई है मेरी लागत में लगने वाला पैसा सरकार कहती है कि जितनी मेरी कीमत है उससे ज्यादा मेरी लागत है। दोस्तों ये मेरा आखिरी सलाम है बस दोस्तों एक बात याद रखना जिस तरह आप अपने पुराने दोस्तों को कभी कभार याद कर लिया करते हो उसी तरह साल दो साल में मुझे जरूर याद कर लेने मैं समझूंगी कि आज भी हम साथ हैं। खुदा हाफ़िज...................
Sunday, April 3, 2011
मैं वानखेडे बोल रहा हूं......
आज मैं गवाह बन गया हूं उस इतिहास का जो सैकड़ों वर्षो तक दुनिया की आवाम की जुबान पर सुनाई देता रहेगा। मैं गवाह बन गया हूं उस सोच का जिसमें हौसला है अपने सपनों को साकार करने का। मैं गवाह हूं उस 121 करोड़ के सपनों का जिसने सोचा था कि मेरी पिच पर क्रिकेट के भगवान का सपना साकार हो जो वह पिछले 22 सालों से देख रहे थे। आखिरकार 28 साल बाद वो घंडी आ ही गई। मुंबई के अरब सागर के किनारे जब मुझे बनाया गया तब शायद ही मैंने या मुझे बनाने वालों ने सोचा होगा कि एक दिन मैं इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाऊंगा। तारीख 2 अप्रैल 2011 वो दिन था जब मैं इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया । आज मैं गवाह बना गया हूं उन लोगों की आंखों का जिन्होंने बड़ी चाह से यहां बैठ कर भारत श्रीलंका के बीच हुए ऐतिहासिक मैच को देखा। टीम इंडिया की जीत के साथ ही मानों देश की 121 करोड़ आवाम की सारी मन्नतें पूरी हो गई हो। उस रात ऐसा लग रहा था कि देश में आज सारे त्योहार एक साथ आ गये है। और लोग सोच नहीं पा रहे कि वो दिवाली मनाएं,दशहरा मनाएं, या फिर होली या ईद। देश में आज कोई त्योहार नहीं था लेकिन फिर भी लोग मिठाईयां बांट रहे थे पटाखें फोड़ रहे थे, अबीर गुलाल लगा रहे थे, गले मिल रहे थे। हो भी क्यो ना आज देश में सबसे बड़ा त्योहार जो था। धोनी की सेना ने 28 साल बाद भारत को वर्ल्ड कप की सौगात जो दी थी। टीम इंडिया के खिलाड़ी जब जीत के बाद सचिन को कंधों पर उठाकर मेरे चारों ओर चक्कर लगा रहे थे। तब मेरे बगल में अरब सागर की लहरें अचानक ऊपर उठने लगी मानों वो भी क्रिकेट के भगवान को अपने कंधों पर उठा लेना चाहती हो। टीम इंडिया की जीत के बाद सारा देश खुश था तो क्रिकेट के भगवान की आंखे नम थी। जाहिर है ये उस जीत के आंशू थे जिसका इंतजार सचिन की आंखे पिछले 22 सालों से कर रही थी।
Monday, January 3, 2011
भाई लोग कुछ तो सोचो .....
दिल्ली में पिछले दिनों पुस्तक मेला लगा जिसमें देष ही नहीं विदेषों के भी प्रकाषकों ने भाग लिया। लेकिन लोगों ने कितना भाग लिया इसका अंदाजा लगाना मुष्किल है। क्योकि लोगों को जितनी संख्या में पहुंचना था उतनी संख्या में नहीं पहुंचे। कुछ ने सर्दी को वज़ह बताया तो कुछ ने कहा कि क्या करेगें जाके। मेरे ही कुछ दोस्तों ने तो यहां तक कह दिया कि पागल है क्या बुक फेयर जाएगा। न्यू ईयर पर कही और घूम के आ। नया साल था तो मैंने सोचा साल भर छुट्टी के दिन तो कही ना कही घूमने जाता हू। लेकिन इस बार बुक फेयर ही जाऊगा। वहां पहुंच के लगा कि मेरे दोस्त आने के लिए क्यों मना कर रहे थे। मेले दिल्ली का वो यूथ गायब था जो ट्रेड फेयर के दौरान प्रगति मैदान में दिख रहा था। बुक फेयर में जो लोग पहुंचे थे उनमें से ज्यादातर अपने बच्चों के साथ घूमने आए थे। ऐसा नहीं है कि मेले में लोग केवल मौज मस्ती के लिए ही आए थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो पुस्तकों के इस मेले का भरपूर लाभ लेने के इरादे से यहां पहुंचे थे। क्योकि उन्हें मालूम है कि ये दिल्ली में साल में एक बार होने वाला पुस्तकों का महा कुंभ है। इस लिए वो इसमें डुबकी लगाने से भी नहीं चूकना चाहते। मेले में प्रकाषकों ने भी लोगों को लुभाने के लिए तरह-तरह के डिस्काउंट दे रखे थे। कोई दस फीसदी डिस्काउंट दे रहा था तो कोई 40-50 फीसदी तक का डिस्काउंट दे रहा था। लेकिन यहां का आलम देख कर बड़ा अजीब लगा। कि जो लोग पीज़ा,बर्गर और बड़े होटलों में डिस्कांउट और बिल नहीं देखते वो यहां 100 रूपये से भी कम कीमत की किताब पर डिस्कांउट देख रहे थे। षायद यही भारत की तस्वीर है कि अमीर के पास एैषो आरम के लिए तो पैसे है लेकिन ज्ञान की पुस्तकों के लिए पैसे नहीं है। लोग अपने बच्चों को आज डॉक्टर,इंजीनियर, और ना जाने क्या-क्या बनाना चाहते है। लेकिन लेखक नहीं बनाना चाहते। ये भी देष के एक विडंबना है। ये सवाल है खुद से हर उस इंसान से जिन्हें पुस्तकों से लगाव है। हर उस इंसान से जो किताबों को अपने बच्चे की तरह संभालकर रखते है। चलएि साहब किसी ने पुस्तक मेले का मजा लिया हो या ना लिया हो लेकिन मैंने एक बार फिर से कुंभ में स्नान कर लिया।
Sunday, December 12, 2010
क्यों जरूरी हैं उमा ?
उमा भारती एक ऐसा नाम जिसे लेने से पहले बीजेपी के आला नेता भी एक बार सोचते हैं । आखिर क्या वज़ह है कि बीजेपी के लिए उमा भारती जरूरी है। जब भी बीजेपी में उमा भारती की वापसी की सुगबुगाहट षुरू होती है। बीजेपी के कुछ नेता असहज होने लगते हैं। वज़ह है उमा भारती का अडियल रवैया। एक बार फिर से बीजेपी में उमा भारती की वापसी के लिए संभावनाएं तेज हो गई हैं। कहा जा रहा है कि पार्टी के सबसे वरिश्ठ नेता लाल कृश्ण आडवाणी ने उमा भारती की वापसी पर अपनी सहमति दे दी है। लेकिन साध्वी के भेश में राजनेता उमा भारती के बीजेपी में पुनर्प्रवेष की सम्भावनाओं पर पार्टी के भीतर ही आपस में तलवारें खिंच गई है। वर्तमान समय में बीजेपी का पद आसीन कोई भी नेता उमा की वापसी के मुद्दे पर सहमत नहीं है। लेकिन बीजेपी की क्या मजबूरी है कि वो बार-बार उमा की वापसी के लिए नए रास्ते तैयार कर रही है। क्या वज़ह है कि संघ तक उमा भारती के मुद्दे पर चुप्पी साध लेता है। मध्य प्रदेष की मुख्यमंत्री रह चुकी उमा भारती ने जब बीजेपी से बगावत कर अपनी पार्टी बनाई थी तब ऐसा लग रहा था कि बीजेपी को काफी नुकसान पहुंचाएंगी लेकिन तस्वीर एक दम उल्टी दिखी। उमा भारती ने ना तो बीजेपी को कोई नुकसान पहुंचाया और ना ही अपनी जमीन मजबूत कर पाई। बीजेपी से बाहर रहकर उन्होंने न केवल अपनी ताकत का ही आकलन कर लिया। बल्कि बीजेपी ने भी उनकी ताकत देख ली। कि साध्वी का जनाधार कितना है। बीजेपी से बगावत के बाद उमा भारती के साथ वहीं नेता और लोग दिखे थे जिन्हें या तो बीजेपी में कोई पद नहीं मिला था या फिर लोध जाति के लोग। उमा भारती लोध जाति से आती है। इस जाति का प्रभाव यूपी और एमपी के कुछ जिलों में है। यूपी में कल्याण सिंह को लोध जाति का सबसे बड़ा नेता माना जाता हैं। यही वज़ह है कि यूपी विधानसभा चुनावों में उमा भारती ने अपने उम्मीदवारों को चुनावी समर में नहीं उतारा था। यही हाल गुजरात चुनावों के दौरान भी हुआ था जब अपने उम्मीदवारों के फॉर्म जमा करवाने के बाद नाम वापस ले लिए थे। उमा भारती ने उस समय ये दलील दी थी कि ये फैसला उन्होंने अपने गुरू की आज्ञा के बाद लिया था। लेकिन वास्तव में उमा भारती को मध्य प्रदेष के नतीजे याद थे। वो नहीं चाहती थी कि गुजरात चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े कर वो बीजेपी में वापसी के सारे रास्ते बंद कर लें। इस समय एक बार फिर से उमा भारती और आडवाणी नजदीक आ रहे है। ऐसे कयास लगाएं जा रहे है कि पार्टी उन्हें यूपी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी की कमान सौंप सकती है। पार्टी उमा भारती की वापसी से एक तीर से दो निषाने लगाना चाहती है एक तो पार्टी में लाल कृश्ण आडवाणी की सबसे करीब उमा भारती की वापसी और दूसरा पष्चिमी उत्तर प्रदेष में कल्याण सिंह के लोध वोट बैंक में सेंध लगाना। लेकिन उमा भारती की वापसी की ख़बरों से बीजेपी के कई नेता असहज हो गए है। बहरहाल उमा भारती बीजेपी में आने को तैयार है लेकिन सही वक़्त के लिए अभी पार्टी इंतजार में है।
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