देश के समूचा उत्तर भारत इस वक्त कड़ाके की ठंड़
से ठिठुर रहा है। हर कोई बस खुद को ढ़कना चाहता है। लेकिन देश में कड़ाके की सर्दी
के इस मौसम में भी राजनीतिक गलियारों में बहुत गर्मी है। गर्मी ऐसी की हर कोई
बेचैन है चाहे वो खास हो या आम। कोई चौराहें की चाय की दुकान पर होने वाली
अड़ेबाजी में नई सोच की बात करता है और कोई देश के सबसे वीवीआईपी इलाके लुटियन जोन
में सुबह की चाय की चुसकियों के साथ नई राजनीतिक सोच पर सोचता है। हालात ये है कि
सभी अपनी विरासत को बचाने में लगे हैं। दोनों को तो बस चिंता है अपने भविष्य की।
क्योकि देश में एक बार फिर से आम आदमी ने सत्ता को चुनौती दी है। भारत या कहें
दुनिया का इतिहास गवाह है कि जब-जब आम आदमी ने सत्ता को चुनौती दी है तो कुछ नया
हुआ है। इस समय देश में आलम ये है कि कोई इमेज डेवलप करने के लिए 500 करोड़ खर्च
कर रहा है तो कोई पीएम इन वेटिंग है जो इतिहास पर अफसोस जता रहा है। वही एक आम
आदमी पार्टी के नेता अरिवंद केजरीवाल देश में हैं जो एक नई लकीर खींचने का प्रयास
कर रहे हैं। प्रयास ये नही कि किसी नेता या पार्टी की लकीर मिटा के अपनी लकीर खींच
रहे है। केजरीवाल एक ऐसी लकीर खींच रहे है जिसे इस देश के नेताओं ने खींचने की
कोशिश कभी नही की। आज हर कोई केजरीवाल के साथ जुड़ना चाहता है। ये वही केजरीवाल
हैं जिन्हें दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान उम्मीदवार नही मिल रहे थे। लेकिन आज
तस्वीर बदल गई है आज देश के पास एक नेता नही एक सोच है। जिसका एक मात्र उद्देश्य
है आम आदमी को वो सुविधाएं मिले जिसके वो हकदार हैं। आखिर केजरीवाल ने ऐसा क्या
नया कह दिया कि आज आम आदमी केजरीवाल के साथ खड़ा है। चुनावों में हर पार्टी के
मेनिफेस्टों में बिजली,पानी,सड़क मुख्य मुद्दे होते है लेकिन वो सिर्फ मुद्दे भर
ही बन कर रह जाते हैं। ऐसा क्या है कि आजादी के 66 बरस बीत जाने के बाद भी देश आज
वही खड़ा है जहां 15 अगस्त 1947 को खड़ा था। देश में तब भी बिजली,पानी, सड़क और
गरीबीं मुद्दे थे आज भी है। आजादी के इतनें सालों बाद भी कुछ नही बदला। हर साल
सरकारें गरीबों के पुर्नवास के लिए सैकड़ों योजनाय़ें बनाती है लेकिन तस्वीर है कि
बदलती नहीं। देश में गरीब आज भी सड़कों के किनारे सोने को मजबूर है। आज भी देश में
हर शहर में सैंकड़ों झुग्गी बस्तियां बसी हुई है। जहां इंसान नरक से भी बदत्तर
जिंदगी जीने को मजबूर है। आज भी हर साल पानी को लेकर शहरों,गांवों कई हत्यायें हो
जाती है। खुद की प्यास बुझाने के लिए लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। वज़ह
साफ है कि इनकी दशा में सुधार करने के लिए कभी कोई ईमानदार प्यास ही नही किया गया।
वरना ऐसी कौन सी गरीबी है जो सरकार की अरबों खरबों रुपये की योजनाओं के बाद भी
जाने का नाम नही ले रही है। देश से गोरे गये और अपनों ने अपनों का शोषण करना शुरू
कर दिया। लोगों के आज सबसे ज्यादा परेशानी देश की बाबूशाही से है जो ना तो खुद काम
करती है और ना ही किसी को काम करने देती है। यहीं पर केजरीवाल की सोच आम आदमी के
जेहन में फिट बैठती है। केजरीवाल देश में काम के बदले गांधी के चल को खत्म करने की
कोशिश में लगे हैं। केजरीवाल अफसरों को ईमानदारी से काम करने की सलाह देते है। और लोगों
को उन पर नज़र रखने के गुर सिखा रहे हैं। लेकिन लोगों की सोच में कितना बदलाव आएगा
ये एक बड़ा सवाल है क्योकि रिश्वत मांगना और देना दोनों गुनाह हैं। अब एक बात और
समझने वाली है कि जिस तरह आज केजरीवाल के साथ लोग जुड़ रहे है ऐसे में केजरीवाल के
सामने खुद की सोच को बनाये रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी। नहीं तो कहीं केजरीवाल का
भी हाल इतिहास के आंदोलनों जैसा ना हो जाएं।