Sunday, April 3, 2011
मैं वानखेडे बोल रहा हूं......
आज मैं गवाह बन गया हूं उस इतिहास का जो सैकड़ों वर्षो तक दुनिया की आवाम की जुबान पर सुनाई देता रहेगा। मैं गवाह बन गया हूं उस सोच का जिसमें हौसला है अपने सपनों को साकार करने का। मैं गवाह हूं उस 121 करोड़ के सपनों का जिसने सोचा था कि मेरी पिच पर क्रिकेट के भगवान का सपना साकार हो जो वह पिछले 22 सालों से देख रहे थे। आखिरकार 28 साल बाद वो घंडी आ ही गई। मुंबई के अरब सागर के किनारे जब मुझे बनाया गया तब शायद ही मैंने या मुझे बनाने वालों ने सोचा होगा कि एक दिन मैं इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाऊंगा। तारीख 2 अप्रैल 2011 वो दिन था जब मैं इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया । आज मैं गवाह बना गया हूं उन लोगों की आंखों का जिन्होंने बड़ी चाह से यहां बैठ कर भारत श्रीलंका के बीच हुए ऐतिहासिक मैच को देखा। टीम इंडिया की जीत के साथ ही मानों देश की 121 करोड़ आवाम की सारी मन्नतें पूरी हो गई हो। उस रात ऐसा लग रहा था कि देश में आज सारे त्योहार एक साथ आ गये है। और लोग सोच नहीं पा रहे कि वो दिवाली मनाएं,दशहरा मनाएं, या फिर होली या ईद। देश में आज कोई त्योहार नहीं था लेकिन फिर भी लोग मिठाईयां बांट रहे थे पटाखें फोड़ रहे थे, अबीर गुलाल लगा रहे थे, गले मिल रहे थे। हो भी क्यो ना आज देश में सबसे बड़ा त्योहार जो था। धोनी की सेना ने 28 साल बाद भारत को वर्ल्ड कप की सौगात जो दी थी। टीम इंडिया के खिलाड़ी जब जीत के बाद सचिन को कंधों पर उठाकर मेरे चारों ओर चक्कर लगा रहे थे। तब मेरे बगल में अरब सागर की लहरें अचानक ऊपर उठने लगी मानों वो भी क्रिकेट के भगवान को अपने कंधों पर उठा लेना चाहती हो। टीम इंडिया की जीत के बाद सारा देश खुश था तो क्रिकेट के भगवान की आंखे नम थी। जाहिर है ये उस जीत के आंशू थे जिसका इंतजार सचिन की आंखे पिछले 22 सालों से कर रही थी।
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