पटना के गाँधी मैदान में बीजेपी ने विधान सभा चुनाव से पहले शक्ति प्रदर्शन कर अपनी ताकत को दिखा दिया। बीजेपी की ये रैली जनता दल (यू ) के लिए काफी नुकसान दायक हो सकती है। इस लिए रैली से पहलेही नितीश बाबु मोदी के साथ फोटो छपने पर आग बबूला हो गए। आलम ये था की नितीश ने कानूनी करवाई की धमकी तक दे डाली। १३ जून को नरेन्द्र मोदी जैसे ही स्वाभिमान रैली को संबोधित करने के लिए उठे तो गाँधी मैदान का नज़ारा मोदी मैहो गया। हर तरफ से मोदी की जय जय कर की आवाज़े आ रही थी। मोदी ने जैसे ही बोलना शुरु किया मानो कई महीनो से गर्त से समाई बीजेपी को नईजान मिल गयी हो। मोदी एक बार फिर अपने चित परचित अंदाज़ में दिखे। मोदी ने आतंकवाद, नक्सलवाद , महगाई , और भोपाल गैस त्रासदी के लिए कांग्रेस को सीधे जिम्मे दर बताया । मोदी ने सोनिया गाँधी से उन्ही शब्दों में जवाब मागा जिन शब्दों में सोनिया ने लोक सभा चुनाव के दौरान मोदी से गोधरा कांड के लिए जवाब मागा था। मोदी ने सोनिया से पूछा की भोपाल गैस कांड के दोषियों को भगाने वाला कौन है? मोदी के ये सवाल बीजेपी के लिए प्राण वायु बन गए । जो बीजेपी मुद्दों के विहीन थी उसे अचानक मुद्दा मिल गया। मोदी के ये बाण कांग्रेस के लिए बहुत घातक साबित हुए। इतना ही नहीं मोदी के भाषण के कुछ देर बाद सारे राजनीतिक दलों के नेता टीवी पर बयां देते नज़र आये। साफ है की बीजेपी के प्रमुख नेता जब बोलते है तो सब चुप रहते है लेकिन जब मोदी बोलते है तो सब मैदान में उतर आते है। जाहिर है की मोदी का कद बीजेपी के नेता से भी बड़ा हो गया है। इस लिए जब मोदी बोलते है तो राजनीतिक दलों के कान खड़े हो जाते है....... आखिर मोदी तो मोदी है भाई ..............
Monday, June 14, 2010
Thursday, June 10, 2010
अब क्यों जागी सरकार?
1५२७४ मौते , ५ लाख से ज्यादा लोग गैस से पीडित , वक्त २५ साल , आरोपी १२ एक की मौत एक फरार , सजा केवल २ साल , जुरमाना १-१ लाख रुपए जमानत पर रिहा २५-२५ हजार के मुचलके पर, क्यां गैस पीडितो के लिए यही न्याय है। क्या कोर्ट के फैसले से उनलोगों के दिलो के जखम भर जायेगे। २५ साल बीत गए और सरकारे कुम्भकरनी नीद सोती रही लेकिन अब ऐसा क्या हो गया । कि राज्य ही नहीं केंद्र सरकार भी जाग गई । यहाँ तक की सत्ताधारीपार्टी के दो दिग्गज नेताआपस में शुरुहो गए । दोनों में से एक तत्कालीन राज्य सरकार के मुख्यमंत्री को बचा रहे है तो दूसरा उन्हें घसीट रहा है। आज जितने भी खुलासे हो रहे है। वो २५ सालो के दौरान क्यों नहीं हुए । जो अफसर आज नेताओ और बड़े अफसरों को दोसी बता रहे है । क्या वो दोसी नहीं ? क्यों की देश में किसी मामले को दबाना , या अपने पद का दुरपयोग करना अपराध है। जो अफसर आज न्याय की बात कर रहे है वो तब क्या सो रहे थे। तब उनका जमीर नहीं जागा। ऐसा क्या हो गया जो कल तक अपनी जुबान नहीं खोलते थे। आज पूरी कथा सुना रहे है..... ये अपने आप में एक सवाल है? इसका जवाब कौन देगा। क्या ये लोग दोसी नहीं मुख्य आरोपी को भगानेमें। अगर इन लोगो ने तब अपनी जुबान खोली होती तो शायद आज नतीजा कुछ और हुआ होता। अगर इन अफसरों को उस दिन अपना फर्ज याद होता तो शायद आज न्याय की आसमें लोगो को भटकना न पड़ता............... सयाद अब न्याय मिल जाये तो दोसी कौन होगे.....
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